सीतापुर लोकसभा: इस तैयार रणक्षेत्र में कौन काटेगा राजनीति की फसल

सीतापुर। इस बात की प्रबल संभावना है कि सीतापुर में लोकसभा सीट पर लड़ाई कड़ी होगी। चूँकि तीन दुर्जेय प्रतिद्वंद्वी हैं। हालाँकि कुछ लोग इन चुनावों की पक्षपातपूर्ण आलोचना कर सकते हैं

Apr 29, 2024 - 20:11
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सीतापुर लोकसभा: इस तैयार रणक्षेत्र में कौन काटेगा राजनीति की फसल
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सीतापुर। इस बात की प्रबल संभावना है कि सीतापुर में लोकसभा सीट पर लड़ाई कड़ी होगी। चूँकि तीन दुर्जेय प्रतिद्वंद्वी हैं। हालाँकि कुछ लोग इन चुनावों की पक्षपातपूर्ण आलोचना कर सकते हैं, लेकिन बसपा और कांग्रेस के चुनाव भी लगातार बढ़त हासिल कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि प्रतिद्वंद्विता शायद रोमांचक होगी. सीटूपुर की उपजाऊ लोकसभा सीट पर चुनाव का नतीजा तो 4 जून को ही पता चलेगा, लेकिन तमाम दिग्गज अभी से ही चुनावी मैदान में उतर चुके हैं.

बीजेपी, बीएसपी और कांग्रेस एक दूसरे से जमकर मुकाबला करेंगी.

आपको बता दें, दौड़ में सिर्फ आठ दावेदार हैं। नौ अभ्यर्थियों के नामांकन पत्र खारिज होने के कारण। आठ में से केवल तीन प्राथमिक उम्मीदवार हैं, और वे एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे। इसमें कांग्रेसी राकेश राठौड़, बसपा नेता महेंद्र यादव और भाजपा सदस्य राजेश वर्मा शामिल हैं। गुरुवार को नामांकन प्रक्रिया समाप्त होने और नामांकन पत्रों की जांच के बाद शुक्रवार को केवल आठ उम्मीदवारों के नामांकन पत्र सही होने की पुष्टि हुई। तीनों गुटों के कार्यकर्ता जमीन पर उतर गये हैं और जमकर वोट बटोरने में जुटे हैं. हर कोई एक दूसरे की तीखी आलोचना कर रहा है और अपनी उपलब्धियों का बखान कर रहा है.

तीनों दलों में से हर एक ने प्रमुख स्थान हासिल कर लिया है।

ऐसा नहीं है कि आमने-सामने की प्रतिस्पर्धा में एक पक्ष स्वाभाविक रूप से दूसरे से कमज़ोर है। जब कांग्रेस पार्टी की बात आती है, तो सीतापुर सीट 1952 के चुनावों के बाद से लोकसभा में चर्चा में रही है। 1952 और 1957 के चुनावों में कांग्रेस यह सीट उमा नेहरू से हार गई थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू की भाभी उमा नेहरू की शादी जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई श्यामलाल से हुई थी। यहां भारतीय जनसंघ ने 1962 और 1967 के चुनावों में जीत हासिल की थी. लेकिन 1971 में कांग्रेस की यहां एक बार फिर वापसी हुई. आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस को यहां हार का सामना करना पड़ा। यहीं पर भारतीय लोकदल ने 1977 का चुनाव जीता था। फिर, 1980, 1984 और 1989 में कांग्रेस ने यहां लगातार हैट्रिक जीती। वर्ष 1990 में मंदिर आंदोलन की राष्ट्रीय गति के साथ-साथ भाजपा की किस्मत में सुधार देखा गया। यहां 1991 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी विजयी हुई. यहां 1998 में बीजेपी ने और 1996 में समाजवादी पार्टी ने चुनाव जीता था. 1999 से 2009 तक लगातार तीन चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने जीत हासिल की थी. हालांकि, 2014 के चुनाव में मोदी लहर के कारण बीजेपी को ये सीट जीतने में मदद मिली.

बीजेपी का फिलहाल अभेद्य किले पर कब्जा है.

फिलहाल, सीतापुर की पांच लोकसभा सीटों में से चार पर बीजेपी का भगवा जीत रहा है. जिसमें लहरपुर विधानसभा पर सपा का झंडा लहरा रहा है तो वहीं सीतापुर, सेउता, महमूदाबाद और बिसवां में बीजेपी का कब्जा है. राम मंदिर लहर और राशन वितरण जैसी कई पहलों के जरिए भाजपा महत्वपूर्ण जन समर्थन हासिल करने में सफल होती दिख रही है, लेकिन यह तय करने में समय लगेगा कि ऊंट आखिरकार किस करवट बैठेगा।

ये दावेदार लड़ाई में शामिल होने जा रहे हैं।

भाजपा के राजेश वर्मा, बसपा के महेंद्र सिंह यादव, कांग्रेस के राकेश राठौर, अपना दल के कासिफ अंसारी, राष्ट्रीय शोषित समाज के चंद्र शेखर वर्मा, सरदार पटेल सिद्धांत पार्टी के राम आधार वर्मा, आजाद समाज पार्टी के लेखराज लोधी , और स्वतंत्र पार्टी की विद्यावती उन आठ उम्मीदवारों में से हैं जिनके नामांकन पत्र वैध हो गए हैं। अन्य के नामांकन पत्र खारिज कर दिये गये. आपको बता दें कि कल नामांकन प्रक्रिया के आखिरी दिन तक 17 उम्मीदवारों ने पिछले सात दिनों में 28 सीटों के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया है।

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